Thursday, May 26, 2011

मुंबई!



ये शेहेर जिसमे जान बसती है...
रंगबिरंगी सब आँखें है, जहाँ पटरियाँ हसती है|
चलता रहता है ये शेहेर, जहाँ तक नज़रें ले जाए
हर तनहा मुसाफिर को, पूरा समंदर दे जाए|
घड़ियाँ यहाँ बोलती है,
सपनो को भाव लगाकर तोलती है
हर नुक्कड़, हर गली
अनगिनत कहानियाँ खोलती है|
फूटपाथ की भी यहाँ सांसें चलती है, गोद लिए फिरती है जिंदगियाँ कई
मशरूफ है अपने आप में सदियों से ये शेहेर
ये शेहेर कभी बूढा होता ही नहीं|