Monday, February 1, 2010

तुम्हारी, कमला.

हर रात तुम आकर मेरे सपनो में बिछे उस पुराने बाक पर बैठ जाते. बीमार बूढा सा लगता वो बाक. साँसे जैसे थमने के लिए ही चल रही हो. तुम आकर उसपर यूँ टेकते जैसे किसी सिंघासन पर बैठे हो. कुछ ख़ास था तुममे. राजा मिडास की तरह “जो छू लो सोना बन जाए” वाली तरकीब तुम्हे पता थी शायद. आँख खुली तो बिस्तर की सिलवटों के अलावा कुछ नहीं दिखा. न तुम, न तुम्हारे होने की कोई निशानी. सूरज की तीरंदाजी का शौक कुछ ज्यादा ही गहरा हो चला है इन दिनों. सुबह हुई नहीं की किरणों के वार शुरू. नींद घबरा कर छिपती फिरती है जम्हाईयों में. उठकर आइना देखा. जब तुम थे तो तुम्हारी आँखों में देख लिया करती थी, अब आईने से ही काम चलाना पड़ता है. बाल सवारे और निकल पड़े दिन बिताने.

तुम दूर शेहेर में मेरे लिए ज़िन्दगी तलाशने गए हो. ये जाने बिना की वो ज़िन्दगी तुम ही हो. कहते हो मकान बनवाओगे मेरे लिए. जबसे गए हो तबसे हर दिन एक ईंट भी पड जाती तो आज तक हमारा एक मेहेल बन चूका होता. कागज़ के कुछ टुकड़े जोड़ने के लिए कितने रिश्ते तोड़ने पड़ते है. अजीब नहीं लगती तुम्हे दुनिया की ये रीत? तुम्हारी अम्मा नींद में तुम्हारा नाम बडबडाती है. वो जितनी बार मूह खोलती है उतनी बार मेरी आँख खुलती है. बताओ किसका प्यार ज्यादा है?

पोस्टमन कल कुछ सेहमा सा लगा. उसने अम्मा से बड़े दिनों बाद सीधे मूह बात की. वरना चिट्ठी फ़ेंक कर जाने की तो उसकी पुरानी आदत है. मुझे पढना लिखना आता है ये जानते हुए कलमूहा अम्मा को पढ़ कर सुना रहा था. “एक रेल दुर्घटना में आपके बेटे जगन्नाथ की मौत हो गयी”. नाम तो तुम्हारा ही था. सठिया गया है ये डाकिया. बकता रहता है. अच्छा वो छोड़ो, पता है तुम्हारा वो नीला कम्बल मैंने अच्छे से धो दिया है. बाज़ार से मेहेंगी टिकिया लायी थी. अब दाग ढूँढ के तो दिखाओ उसपर कोई. घर में काफी लोग आये हुए है आज. मातम का माहोल है कुछ. कोई मारा है शायद गली में. पर समझ नहीं आ रहा ये सब लोग हमारे घर में क्यूँ है. अब चाय नाश्ता सब मेरे ही मथ्थे.

बहुत लिख लिया. अब जाना होगा. अम्मा कल से बहुत रो रही है तुम्हारी. याद करती है तुमको. मैं वैसे ठीक हूँ. आते वक़्त काजल की डिबिया और मेटल की चूड़ियाँ लाना मत भूलना. और हाँ वो जो फिल्मों में लड़कियां पर्स लिए घूमती है, वैसी कोई पर्स मिले तो ले आना. लाल रंग में.

ख़त का जवाब लिखना जरूर. तुम्हारी बहुत याद आती है. हो सके तो कुछ पैसे भिजवा देना. जानते है आना मुश्किल है पर कोशिश जरूर करना. तुमने कहा था हर बार खाने पीने की बातें न करू इसलिए खाने के बारे में कुछ नहीं पूछ रही हूँ. अपना ध्यान रखना. और जल्दी से लौट के आना. मैं राह देखूंगी तुम्हारी. मुझे याद करते रहना.

तुम्हारी,
कमला

6 comments:

  1. Hey very nice touching.... damn good... I fall in tears..... Good 1 :-)

    It reminds me Smita Patil's Hindi movie .... Lady chracter of this movie keeps on waiting for her husband on railways station ..... At the end her wait gets over and she is able to meet her husband ......I think name of the movie was Ravan..... But yes your story reminds me this movie. ...

    Good keep writting....

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  2. If written words can be heard than u would hear me sobbing.... Its just like holding the sand tight in ur hands and trying to avoid the fact that sand is gone. Avoiding the eye contact with the mind and consoling the heart by saying "AAL IZZ WELL". Portrayal of the misery was done with great impact. Good Job!

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  3. It was wonderful.... I loved it. :)

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  4. Bhabi kahan se lai hain aap itne ehsaas! yahan to dhundne padte hain, milte hain... magar tukdon main... bohot accha likha hai, sach pucho to dil bhar aaya....

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  5. Thanks guys. This piece is very close to my heart. I am glad you could relate to it.

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